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मन तो म्हारो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
सुख सूं बैठी
सांसां री सागोतर नै
हेलो पाडूं कियां
लाडेसर तो लखणा रो लाडो है ई
लारै रही बबली
पण उण तो पक्कायंत ई
भाटो कोनी मारियो मोरड़ी रै
उणनै क्यूं डंडूं !
भायलो तो म्हारो है तूं
घरां आयो है जणा
अबै घड़ी भर बैठ तो सरी
आयोड़ै रो इत्तो आव-आदर तो जरूरी है
बियां अबार
मन तो म्हारो परदै कानी है
पण कांई करूं
घड़ी-अधघड़ी बात तो करणी ई पड़सी
(तूं छाती माथै ऊभो है नीं !)
-अबार तो चालूं, फेरूं आसूं
अच्छा, नमस्कार !
-नमस्कार, भाई नमस्कार
[जावतां ई हुयो हरख अपार
आज है अदीतवार !]