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मन में चोर लुकाइल बा / शारदानन्द प्रसाद

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बात-बात में घात ढेर बा, मन में चोर लुकाइल बा,
भीतर-भीतर रिसत घाव बा, ऊपर सब हरियाइल बा,
बात-बात में घात ढेर बा, मन में चोर लुकाइल बा।
दुनियाँ बिहँसत बा उछाह से, बिस के दाँत चमक जाता
जहर उतर जाता लेहू में, अमरित मन भरमाइल बा,
बात-बात में घात ढेर बा, मन में चोर लुकाइल बा।
केकरा से का कहीं कि दरपन, टूट रहल बाटे मन के
तन के पाँकी में कइसे, आसा के कमल फुलाइल बा,
बात-बात में घात ढेर बा, मन में चोर लुकाइल बा।
रात अन्हार समुन्दर हइसन कइसे पाईं पार, मगर
दूर किनारा पर स्नेह के एगो दिया बराइल बा,
बात-बात में घात ढेर बा, मन में चोर लुकाइल बा।