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मन्दार-मधुसूदन महिमा / भाग ३ / महेश्वर राय

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सुन्दर मन्दर गिरि....
देवगण चातुरी से दैत्यराज पास धाए
अमृत के लोभवा से दैत्यराज बलि आए
देवासुर से सगरा मथावै मधुसूदना॥21॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
देव-दानव मिलि कए, मन्दर के पास गए
मन्दर उठत नहिं, मेहनत विफल भए
दैत्यराज स्तुति करावै मधुसूदना॥22॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
स्तुति से मुदित भेलै, मन्दर के लिग गेलै
सागर मथावै लेली, मन्दर तैयार कैलै
मन्दर गिरि पावन बनावै मधुसूदना॥23॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
हठ करि मन्दर गिरि दर्शन के वर माँगलक
हरि के ”तथाऽस्तु“ से तुरत मन्दर फाँड कसलक
ताहि दिन से मन्दर निवासै मधुसूदना॥24॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मन्दर मथानी भेलै, बासुकी के रसरी रे
अग्र भाग असुर धरे, देवगण पुछरी रे
हेना करि सगरा मथावै मधुसूदना॥25॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
सागर मथय गेलै, चौदह रतन देलै
अमिय कलश देखि, देवासुर मगन भेलै
देवासुर में झगड़ा बझावै मधुसूदना॥26॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मोहनी के भेष धरि, तुरत पधारल हरि
अमिय-घट छद्मभेषी मोहनी के हाथ करि
हेना करि झगड़ा मिटावै मधुसूदना॥27॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
देव दानव फरके फरके पंगति में बैठि गेलै
अमृत बँटवारा लेली मोहनी तैयार भेलै
देवगण अमिय पिलावै मधुसूदना॥28॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मूढ़मति असुरगण मोहनी पै मुग्ध भेलै
मोहनी के हथवा से मदिरा लै पीबी गेलै
देवगण कै अमर बनावै मधुसूदना॥29॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
छद्मभेषधारी राहु देवता संग बैठि गेलै
अमिय के घोंटवा से अमर प्रभाव लेलै
राहु ऊपर सुदर्शन चलावै मधुसूदना॥30॥