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मन्दार-मधुसूदन महिमा / भाग ८ / महेश्वर राय

सुन्दर मन्दर गिरि....
मनोहारी रामकुण्ड, सीताकुण्ड, लछमीकुण्ड
कुण्ड एक गोदावरी, विलक्षण शंखकुण्ड
पाँचजन्य शंखवा नुकावै मधुसूदना॥71॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
कुण्ड एक लघु पावन बीच पापहरणी में
कुष्ठग्रस्त छत्रसेन नहैलै पुष्करणी में
कुष्ठमुक्त राजा को करावै मधुसूदना॥72॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मकर के दिनमा रे बाँसी में लागे मेला
हाथीचढ़ी मधुसूदन मूरति परिभ्रमण कैला
ताहि पापहरणी नहावै मधुसूदना॥73॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मन्दर-मधुसूदना रे आदिवासी धर्मभूमि
आदिवासी नर-नारी नाचै-गावै झूमि-झूमि
वंशरी पै गीतवा सुनावै मधुसूदना॥74॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
स्नान करि कुण्डवा में करै सब मन्दरारोहण
चोटी पर से देखै सब कामधेनु गैया शोभन
छहाछत रूपवा देखावै मधुसूदना॥75॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मन्दिर आँगनमा में तुलसी के चौरा रे
गरूड़-स्तंभ शोभे नाचै प्रेमी बौरा रे
रामधुन, भजन करावै मधुसूदना॥76॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मन्दिर-छतरीतर गुफानुमा कोठरी रे
धर्मध्वनि, जयध्वनि गूँजै सभै अगरी रे
सौनी पूनम झुलवा झुलावै मधुसूदना॥77॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
आखाढ़, सावन, भादो, कातिक, माघ के महिनमा रे
पापहरणी मेला लागै संक्रान्ति के दिनमा रे
पापहरणी पावन बतावै मधुसूदना॥78॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
गुरूधाम, बैजूधाम, गोनू, अजगैबी धाम
भगता जे पूजा करै, होवै सभै पूर्णकाम
बाँसी मन्दिर केन्द्रस्थल बनावै मधुसूदना॥79॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
बाबा रे सन्याल रिसि, मन्दर के चहुँ दिशि
साधना के सिद्ध गीत गावै बाबा रसि रसि
भगति के जुगति बतावै मधुसूदना॥80॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
बाबा भोली, माधवन, भगवन श्यामाचरण
सभी सिद्ध जोगिया रे करै सदा विचरण
दिव्यधाम मन्दर सुझावै मधुसूदना॥81॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
मन्दर शिखर देखै, करिलै आरोहणा रे
कामधेनु मुख लखै, देखै मधुसूदना रे
जनम-मरण से छोड़ावै मधुसूदना॥82॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी छीकै दैत्यसूदन
योगमाया सहित वन्दन करौं मधुसूदन
नानाविध विपतिया भगावै मधुसूदना॥83॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
ज्ञानहीनम्, भक्तिहीनम्, शोकातुर, अतिदीनम्
पापपङ्के निमग्नोऽस्मि, प्रणमामि नारायणम्
प्रसीद रे प्रसीद उद्धारै मधुसूदना॥84॥

सुन्दर मन्दर गिरि....
भजन गावै महेश्वर, विनय करै कर जोरी
हमरा के बेरियाँ जइहो नहीं तोहें भोरी
बिगड़ल बतिया सँभालै मधुसूदना॥85॥

सुन्दर मन्दर गिरि भेलै रे मथनियाँ से
मथि-मथि रतन निकालै मधुसूदना॥