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मया-पिरित जब पनके रे / पीसी लाल यादव

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मया-पिरत जब पनके रे
मन अंतस ह गद के रे।
गीत झरे होंठ ले गुरतुर
पाँव म घुंघरु छनके रे॥

जांगर पेर पछीना ओगरा,
जिनगी ल अपन तैं सुघरा।
महल बरोबर सरव देवय,
काँड़-कोरई के कुंदरा॥

तन के सवाँगा का काम के?
साज सवाँगा मन के रे॥

मनखे उही मनखे आय।
जेन सब ल अपन जानय
पर के सुख-दुख ल जउन
सऊँहे अपनेच् मानय॥

देख में आथे ओ टूट जाथे,
रहिथे जेन ह तन-तन के रे।

सौ बरस जिए करुवा के,
तउनो तो घलो बेकार हे।
मया-पिरित के छिन भर ह
सौ-सौ जनम के सार हे॥

जिनगी के खेती म बों ले
सतकरम बीजहा घन के रे।