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मर-मरकर यों जीना क्या / सत्यम भारती
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मर-मरकर यों जीना क्या
रोज ज़हर यूँ पीना क्या
घायल हर दिन होना है
चाक जिगर फिर सीना क्या
रोटी में ही उलझे हम
मक्का और मदीना क्या
सबके हिस्से दुखड़ा है
रानी, मोनू, रीना क्या
तुझसे बढ़कर जीवन में
कोई और नगीना क्या