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मसान - 1 / सुशील द्विवेदी

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खून से भीगी हुई
कविताओं के पन्ना-दर-पन्ना को
चिता की लौ से सेंकते हुए कवि
तुम स्पार्टा और एथेंस को भूल गये l
स्पार्टा कभी जीवित नहीं रहा...
एथेंस तुम्हारी धमनियों में दौड़ता है
आज तक। आपादमस्तक,
यातना के गर्भ से सना हुआ
रचता रहा जीवन और मृत्यु के गीत
और राग के भी।
क्योंकि रचने का दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

मसान में बिलखते हुए मित्र कवि!
तुम कवि हो, हत्यारे नहीं
तुम्हारे लोगों ने तुम्हें कवि बनाया है
इसलिए याद रखो
अपने बेजुबां लोगों को
जिन्होंने तुम्हें अपनी आवाजें दी हैं
याद रखो किसानों और मजदूरों को भी
और चाहे खुद को भूल जाना
किन्तु उन्हें मत भूलना
जिनकी वजह से तुम्हारी कविता बनी है l