भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महाकाव्य / अर्चना कुमारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सवाल है-
क्या तुम ज़िन्दा हो!

रुको पलट कर मत देखो
डायरी के पन्ने

साँसों की गिनतियाँ
कोई नही लिखता

अतीत की घुमावदार पगडंडियाँ
भविष्य के किसी शहर नहीं जाती

वर्तमान एक अख़बार है
सुबह का
जिसमें दर्ज पल-पल की खबर
बासी पड़ती जाती है आने वाले घंटों में

तुम्हारी प्रतीक्षा
एक प्रतिप्रश्न है प्रश्न से
उत्तर लम्बी यात्रा पर है

समय की वीथियों में
तुम भ्रमित हो
सब शाश्वत चिरंतन है
नश्वरता में समाहित है
नवीन रचनाओं का उत्स

महाकाव्य फिर लिखे जाएंगे।