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महीना सावन का / देवमणि पांडेय
Kavita Kosh से
- सजनी आंख मिचौली खेले
- बांध दुपट्टा झीना
- महीना सावन का
कर गया मुश्किल जीना महीना सावन का
- मौसम ने ली है अंगड़ाई
- चुनरी उड़ि उड़ि जाए
- बैरी बदरा गरजे बरसे
- बिजुरी होश उड़ाए
घर-आंगन, गलियां चौबारा आए चैन कहीं ना
- खेतों में फ़सलें लहराईं
- बाग़ में पड़ गये झूले
- लम्बी पेंग भरी गोरी ने
- तन खाए हिचकोले
पुरवा संग मन डोले जैसे लहरों बीच सफ़ीना
- बारिश ने जब मुखड़ा चूमा
- महक उठी पुरवाई
- मन की चोरी पकड़ी गई तो
- धानी चुनर शरमाई
छुई मुई बन गई अचानक चंचंल शोख़ हसीना
- कजरी गाएं सखियां सारी
- मन की पीर बढ़ाएं
- बूंदें लगती बान के जैसे
- गोरा बदन जलाएं
अब के जो ना आए संवरिया ज़हर पड़ेगा पीना