महुआ के नीचे / हरिवंशराय बच्चन
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के.
यह खेल हँसी,
यह फाँस फँसी,
यह पीर किसी से मत कह रे,
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के.
अब मन परबस,
अब सपन परस,
अब दूर दरस,अब नयन भरे.
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के.
अब दिन बहुरे,
अब जी की कह रे,
मनवासी पी के मन बस रे.
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के.
घड़ियाँ सुबरन,
दुनियाँ मधुबन,
उसको जिसको न पिया बिसरे.
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के.
सब सुख पाएँ,
सुख सरसाएँ,
कोई न कभी मिलकर बिछुड़े.
महुआ के,
महुआ के नीचे मोती झरे,
महुआ के.
(उत्तरप्रदेश की एक लोक धुन पर आधारित)