महुआ महकी महकी जाय / अनिल कुमार झा
आम रसें छै खट्टा मिट्ठा महुआ महकी महकी जाय
ई गरमी से व्याकुल तन में मन भी बहकी बहकी जाय। कहीं छाँव के ठौर खोजनें
राही आबी हाँफै छै,
लहर लहर से लू के लुटने
नजर सामना कांपै छै।
आगिन बरसैनैं बीतै छै इच्छा दहकी दहकी जाय
आम रसें छै खट्टा मिट्ठा महुआ महकी महकी जाय। जहाँ जहाँ तक नजर जाय छै
सूनो, सनसन साँस करै,
फुफकारै छै फन फैलैने
विखधर, फन फन घास जरै
भूत, भुताहा हेने होय छै साँझो लहकी लहकी जाय
आम रसे छै खट्टा मिट्ठा महुआ महकी महकी जाय।
समय काटबोॅ, जान बचैबोॅ
कठिन बड़ी छै, आफत छै,
पीठ टेकने सब कुछ सहने
जीव, जियै के चाहत छै।
नदी किनारी वहे हवा ते , सुस्ती , चहकी चहकी जाय
आम रसें छै खट्टा मिट्ठा महुआ महकी महकी जाय।