भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मा -1 / दीनदयाल शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारा मार्च
दो हजार छै
अदीतवार रै दिन
दिनुगै-दिनुगै
जद पिताजी
सुरग सिधार्या

तद
मा रोंवती बिलखती
अर कळपती बोली
मन्नै
अेकली नै छोडग्या रै

म्‍हूं सोच्यौ
कै
पांच बेटा
च्यार बेट्यां
अर
घणांई नाती-पोतां रै
बिचाळै
मा ईंयां
किंयां कैवै
कै
मन्नै अेकली नै छोडग्या

म्‍हूं
आज सोचूं
कै इत्ता बेटा-बेटी
अर नाती-पोतां
बिचाळै
मा अेकली है

क्‍यूं कै
मा री आँख्यां
आज भी जोवै
इन्नै-बीन्नै

कै केठा
कदी
दीख ई ज्यै
बांरा जोड़ीदार

जिका
कदी नीं रैया
अळगा
अेक दूजै सूं ।