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माँ, यह अश्वमेध का घोड़ा / रामगोपाल 'रुद्र'

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माँ! यह अश्‍वमेध ला घोड़ा किसने छोड़ा है?

जी करता है, इसे बाँध लूँ,
फिर ताँगे में नाध साध लूँ,
लेकिन, डरता हूँ; कोई मामूली घोड़ा है!

कितना छोटा मेरा कद है!
घोड़ा कितना बड़ा, प्रमद है!
रस्सी कितनी छोटी! बित्‍ते-भर का कोड़ा है!

फिर भी कथा सुनाती है तू,
मेरा जोश जगाती है तू;
कहती डर ही नर के पौरुष-पथ का रोड़ा है।

होता तो मैं भी; पर कैसे?
लव-कुश क्या रहते थे ऐसे?
तू ही देख कि जो मिलता है, कितना थोड़ा है!