माँ / अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'
नौ महीने उदर में समाये रक्खा,
लहू से सींचा नाभी से लगाये रक्खा,
अपनी धड़कन से दिल मेरा जगाये रक्खा,
मीठे सपनो में मुझको बसाये रक्खा।
इतना छोटा हूँ कि हथेली में समा जाता,
अंगूठा चूसू बस और कुछ भी नहीं आता,
छोड़ो हँसना अभी तो मैं रो भी नहीं पाता,
माँ आँखे खोलू तो जी मेरा घबराता।
तेरी गोदी में सीखूंगा मैं खिलखिलाकर हँसना,
ऊँगली तेरी पकड़ कर एक दिन है चलना,
माँ मुझ पर कभी भी नाराज ना होना,
गिर भी जाऊ तो सिखाना संभलना।
अपनी आँचल में मुझको छुपाये रखना,
सर अपना मेरे माथे पर टिकाये रखना,
दुनिया कि निगाहों से बचाए रखना,
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना।
मेरे बालों में उंगलिया फिराते रहना,
मेरे चेहरे को हाथों से थपथपाते रहना,
मेरी आँखों पर चुम्बन लुटाते रहना,
गालों से गालों को लगाये रखना।
माँ मुझको आँचल में छुपाये रखना।
माँ मुझको कलेजे से लगाये रखना।