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माँ इसको कहते / कुलवंत सिंह
Kavita Kosh से
जब भारत ने हमें पुकारा,
इक पल भी है नहीं विचारा,
जान निछावर करने को हम
तत्पर हैं रहते.
माँ इसको कहते.
इस धरती ने हमको पाला,
तन अपना है इसने ढ़ाला,
इसकी पावन संस्कृति में हम
सराबोर रहते.
माँ इसको कहते.
इसकी गोदी में हम खेले,
गिरे पड़े और फिर संभले,
इसकी गौरव गरिमा का हम
मान सदा करते.
माँ इसको कहते.
देश धर्म क्या हमने जाना,
अपनी संस्कृति को पहचाना,
जाएँ कहीं भी विश्व में हम
याद इसे रखते.
माँ इसको कहते.
मिल जुल कर है हमको रहना,
नहीं किसी से कभी झगड़ना,
मानवता की ज्योत जला हम
प्रेम भाव रखते.
माँ इसको कहते.