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माँ का दुध अभिशाप बन गया / पद्मजा बाजपेयी

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1
क्या पता था, माँ का दूध अभिशाप बन जाएगा।
प्यारी धरा पर, इस तरह कहर ढायेगा,
मैंने तो पाला था, इसे रोशनी समझकर,
मगर ये घना कोहरा निकाल गया,
मां का दूध जहर बन गया।
2
जन्म से पहले, हर मंदिर, गुरुद्वारे ले गई इसको,
घंटों पूजा-पाठ किया मैंने,
बड़ी आशा से एक-एक दिन गिने मैंने,
सूरज-चाँद के सपने बुने मैंने,
मगर सब कुछ खाक में बदल गया,
मां का दूध अभिशाप बन गया।
3
लाशों के ढेर पर,
चीखती आवाजों के बीच,
वो कैसे पाता है?
आग की लपटें उसे क्यों नहीं जगाती?
आज तुझे कहने से पहले,
मुझे कोसते हैं लोग।
मेरे खून-खानदान पर थूकते हैं लोग,
मां की गोद ही प्रथम पाठशाला है,
बच्चे को कैसे रूप में ढाला है?
सब कुछ बिखर गया,
मां का दूध जहर बन गया
4
आंखे पथरा गई हैं मेरी,
देखकर नित नई घटनाएँ
अपनी चिता खुद जला रहा है आदमी,
विवेक न जाने कहाँ खो गया,
अब तो मानव स्वयं बारूद बन गया,
मां का दूध अभिशाप बन गया।
5
मैं मर भी गई तो,
मेरी आत्मा यही भटकेगी,
खुले घावों पर बार-बार मरहम मलेगी,
मैं जानती हूँ,
सारी बुराइयों की जड़ मैं हूँ।
हँसती-खेलती दुनिया को निगल गया।
मेरा दूध अभिशाप बन गया।