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माँ का प्यार नहीं खोया / रविशंकर मिश्र
Kavita Kosh से
मुश्किल तो था, पर
मेरा आधार नहीं खोया
पत्नी आयी लेकिन
माँ का प्यार नहीं खोया
एक साथ दोनों होने में
है दुश्वारी भी
जोरू का गुलाम भी
माँ का आज्ञाकारी भी
सबका निभा, किसी का भी
अधिकार नहीं खोया
आकर्षण था एक तरफ तो
एक तरफ सम्मान
दोनों में सन्तुलन बिठाना
रहा कहाँ आसान
सिमटे बहुत मगर अपना
विस्तार नहीं खोया
कहीं आधुनिक सोच
कहीं पर थोड़ा पिछड़ापन
हर मुश्किल निपटा देता है
लेकिन निर्मल मन
कितना अच्छा है, हमने
परिवार नहीं खोया