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माँ के लिए (तीन) / महमूद दरवेश
Kavita Kosh से
माँ !
यदि लौट आऊँ मैं
तू झोंक देना मुझे चिता की आग में
और ’उफ़्फ़’ तक न करना
हवा
चाकू की तरह
चीर रही है मेरा दिल
माँ !
यदि तेरी दुआएँ
न होतीं मेरे साथ
मेरी सूनी आँखों में होता अन्धेरा
और उन अन्धेरी रातों में
मुरझा जाती मेरी आत्मा
सन की तरह
सफ़ेद हो गए मेरे बाल
मौत झेल रहा हूँ मैं
रच रहा हूँ अन्तिम गीत
अपनी बुलबुल के लिए
ओ मेरे बचपन के सितारो !
लौट आओ और बुनो किसी डाल पर
मेरे लिए भी एक घोंसला
मैं भी रहना चाहता हूँ
अपनी आशाओं के घोंसले में
अपनी चिड़िया और चूजों के साथ
जीना चाहता हूँ मैं
उड़ान भरना चाहता हूँ आसमान में
और लौटना चाहता हूँ साधिकार
वापिस अपने घोंसले में
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय