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मांझी का पुल / केदारनाथ सिंह

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अगर इस बस्ती से गुज़रो
तो जो बैठे हों चुप
उन्हें सुनने की कोशिश करना
उन्हें घटना याद है
पर वे बोलना भूल गए हैं।