भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मांडणा / मधु आचार्य 'आशावादी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथ मांय रंग
अर अेक छोटी ब्रष
साम्हीं कोरो कैनवास
कीं चितराम मांडणो चावूं खास
रंगभरी ब्रश चलावूं
आडी -तिरछी रेखावां मांड़ूं
फेरूं मन मांय झांकूं
दाय नीं आवै तो पूंछ दूं रंग
बार-बार ओ ई ढंग
आडी-तिरछी लाइनां मांडणी
मांड-मांड‘र मिटावणी
तस्वीर अेकर ई नीं बणी
माथै मांय ई रैयी पड़ी
सोच्यो -
जे उण नै मांड दी कैनवास माथै
तो बा हुय जासी न्यारी
फेरूं बा याद
नीं रैवैला खाली म्हारी ।