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माघ / यात्री

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ठारि -ठारि में, पोर-पोरमेँ फुटलइ कों ढ़िक गच्छा
सूतल मुनिगा हँसल भभाक’
झुँड़-झुँड़ मधुमाछी भेल बताह
ओम्हरे उड़ि उड़ि गेल!
ओम्हरे उड़ि उड़ि गेल!
टुस्सा पर टुस्सा हुलकइ छइ
देखहक आमक नबगछुलीकेँ
छँउड़ी सभ बहराइलि भोरे, पूजए गेलि तुसारी
किछु रँइची-सरिसोक प्रतापेँ
किछु तीसीक प्रतापेँ
भिट्ठा खेतक लतरल अल्हुआ केलकनि सभकेँमात!
गत्र गत्र कनकन करइत अछि, जो रे माघ क प्रात!