भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माचिस / याद ना आए कोई
Kavita Kosh से
रचनाकार: ?? |
याद न आए कोई
लहू न रुलाये कोई
हाय, अखियों में बैठा था
अखियों से उठ के, जाने किस देश गया
जोगी मेरा जोगी, वे राँझा मेरा राँझड़ा
मेरा दरवेश गया, रब्बा
दूर न जाए कोई
याद न आए कोई ...
शाम के दिये ने आँख भी न खोली
अन्धा कर गयी रात
जला भी नहीं था, देह का बालन
कोयला कर गयी रात, रब्बा
और न जलाए कोई
याद न आए कोई ...