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माटी / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
सोनो, चांदी, हीरा, पन्ना
फकत मर्योड़ी माटी!
आं रै लारै फिरै भागतो
मिनख हुयोड़ो गैलो,
नाख देख ल्यो बीज, कदेई-
आं में नहीं उगैलो,
संजीवण स्यूं हीण, भरै क्यूं
देखादेखी छाटी ?
जका ठगोरा रै झूठ्यांई
आं रो मोल बधायो,
एक धूळ री मुट्ठी रो है
आं स्यूं मान सवायो,
चालै जिण रै संवेदन स्यूं
सिसटी री परिपाटी!
आंख थकां थे आंधा बण क्यूं
थां रो भरम गमावो!
थे माटी रा जायोड़ा हो
माटी रा गुण गावो,
आ परतख परमेसर देखो
खोल हियै री पाटी !