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माटी और सुगंध / उमा अर्पिता

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सावन--
पार साल भी
आया था...,
पार से पार साल भी...
हर साल ही तो आता है
इस साल भी आया है, पर
तुमने--
हर साल भीगने के बाद भी
अनभीगे रह जाने का दोष
सावन के सिर मढ़ दिया है--!
मेरे दोस्त--
शायद तुम नहीं जानते, कि
अन्तस तक भीग कर
सौंधी सुगंध को
जन्म देने के लिए
पत्थर नहीं
माटी होना पड़ता है।