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मातलो छै रात / त्रिलोकीनाथ दिवाकर

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सूना-सूना लागै रामा, चैतो के मास हो
तोरा बिना हम्में पिया रहै छी उदास हो।
बीती गेलै फागुन मास, गेलै नै खुमार हो
उख-बिख मोन लागै, देहो में झुमार हो
सपना में देखी तोरा जागलाँ हटास हो..
तोरा बिना हम्में पिया रहै छी उदास हो।

सिमरो के लाल फूल, सुगबा के भावै हो
बेली के सुगन्ध झरैैै, भौरा उमताबै हो
खदर-बदर पिपरी-खोटा, घुमै आस-पास हो
तोरा बिना हम्में पिया रहै छी उदास हो।

ठाले-ठाले रस भरलो, महुआ रो गाछ हो
मदरैलो गमकों सें, मातलो छै रात हो
ठंढ़ा-ठंढ़ा पछिया में, लागै तरास हो
तोरा बिना हम्में पिया रहै छी उदास हो

सजलॉ न धजलॉ हम्में, गेल्हो परदेश हो
रात-दिन लोर चुवै कजरा छै शेष हो
कहिया तों ऐभो पिया, लगैैनै छी आस हो
तोरा बिना हम्में पिया रहै छी उदास हो।