माता और पुत्र की बात-चीत / गुजराती बाई
माता-
हे प्यारे! कदापि तू इसको तुच्छ श्याम-रेखा मत मान।
यह है शैल हिमाचल इसको भारत-भूमि पिता पहिचान॥
नेह-सहित ज्यों पितु पुत्री का सादर पालन करता है॥
यह हिम-गिरि त्योंही भारत-हित पितृ-भाव हिय धरता है॥
गंगा जमुना युगल रूप से प्रेम-धार का देकर दान।
भारत-भूमि-रूप दुहिता का नेह-सहित करता सम्मान॥
पुत्र-
यह जो बाम ओर नक्शे के रेखामय अतिशय अभिराम।
शोभामय सुन्दर प्रदेश है मुझे बता दे उसका नाम॥
माता-
बेटा मह पंजाब देश है पुण्य-भूमि सुख-शान्ति-निवास।
सर्व प्रथम इस थल पर आकर किया आरियों ने निज वास॥
कहीं गान-ध्वनि कहीं वेद-ध्वनि कहीं महामंत्रों का नाद।
यज्ञ फूल से रहा सुवासित यह पंजाब-सहित आह्लाद॥
इसी देश में बस के ‘पोरस’ ने रक्खा है भारत-मान।
जब सम्राट सिकन्दर आकर किया चाहता था अपमान॥
इससे नीचे देख, पुत्र, यह देश दृष्टि जो आता है।
सकल बालुका-मय प्रदेश यह राजस्थान कहाता है॥
इसके प्रति गिरिवर पर बेटा अरु प्रत्येक नदी के तीर।
देश मान हित करते आये आत्म-विर्सजन क्षत्रिय वीर॥
कोई ऐसा स्थान नहीं है जहाँ अमर चिन्हों के रूप।
वीर कहानी रजपूतों की लिखी न होवे अमर अनूप॥
क्षत्रिय-कुल-अतवंस वीरवर है प्रतापजी का यह देश।
रानी ‘पदमावती’ सती ने यहीं किया है नाम विशेष॥
क्षत्रिया वंश-जाति को चाहिये करना इसको नित्य प्रणाम।
क्षत्रियदल का जग में इससे सदा रहेगा रोशन नाम॥