भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माता यसोदा दही बिलोवे / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
माता यसोदा दही बिलोवे
कान्हूड़ो राड़ मचावै
दही को सपड़को कान्हे ने भावे
ले ले रे कान्हा दही रे गोड़ियो
बाहर सूँ बाबो नन्द जी आयो
तेरी कान्हूड़ो बहुत हठीलो
हार तोड़े मोती मांगे बालूड़ो