भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मातृ सूक्त / गिरधर राठी
Kavita Kosh से
वह पूर्ण है
उसके भीतर से
निकलेगा पूर्ण
पूर्ण के भीतर से पूर्ण के निकलने पर
पूर्ण ही बचेगा
निकले हुए पूर्ण के भीतर से निकलेगा
पूर्ण
होती रहेगी परिक्रमा पूर्ण की
यही है विधान
किन्तु यह विधि का
अविकल उपहास है
इसीलिए
पूर्णांक होकर भी
कोई हो जाता है कनसुरा
कोई कर्कश कोई करूणाविहीन...
इस तरह विधाता को पूर्णता लौटाकर
आधे-अधूरे हम सब
रखते हैं उस को प्रसन्न!