भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माधव! मन नहिं मानत बोध / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग मालकोस-तीन ताल)

 माधव! मन नहिं मानत बोध।
 हौं समुझा‌इ थकयौ, दौरत नित प्रतिपल तजि अवरोध॥
 रूप-‌अमिय-रस-पान करन कौं अतिसय हिय उल्लास।
 होत न कबहुँ निरास, सतत संलग्र परम बिसवास॥
 तुहरी सुनत, सुनावत अपनी, तज मरजादा-लाज।
 रहत सदा अनुराग्यौ संतत तुम सन नागर राज॥
 भूल्यौ अग-जग कौ प्रपंच सब, भूल्यौ तन-धन-मान।
 एक तुहारे चरन-कमल में अरपन कीन्हें प्रान॥
 भुक्ति-भक्ति, अनुरक्ति-मुक्ति-सब बिसरी, रही न एक।
 गति-मति-रति नित पद-पदमनि महँ-रही यहै बस टेक॥