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मानव-दानव-गाय-सिंह-करि-काक-मोर बन / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(तर्ज लावनी-ताल कहरवा)
मानव-दानव-गाय-सिंह-करि-काक-मोर बन सुमन-सुगन्ध।
माता-पिता-पुत्र-पति-पत्नी, निज-पर-जोड़ विविध सबन्ध॥
कितने रूपों में वे प्रियतम आते नित्य हमारे पास।
देते कभी स्नेह-वत्सलता, देते कभी भयानक त्रास॥
प्रियतम को पहचान सभी में, करें सभीका नित सत्कार।
उनके सुख-प्रीत्यर्थ करें हम यथायोग्य सारे व्यवहार॥