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मानव हाट / सुरेश बरनवाल
Kavita Kosh से
मजदूर
हाट पर खड़ा मांस का जिन्स
ठेकेदार
आंखों में तराजू लिए
इस मांस का वज़न लेता है
और क़ीमत लगाता है एक दिन की
उस दिन वह मांस
ठेकेदार का कहा मानेगा
पिसेगा सीमेन्ट कंक्रीट के ढेर में
और शाम को
खुद को समेटता घर लौटेगा
उस शाम
उसकी पत्नी
उसके बच्चे
और वह खुद
उसके मांस के एक दिन बिक जाने का
रोटी खाकर
जश्न मनाएंगे।