भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मानवता का तिलक लगा के / बल्ली सिंह चीमा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मानवता का तिलक लगा के
छाती पर सूरज खुदवा के
चुपके-चुपके उतर रही है
साम्प्रदायिक रात हमारे भारत में ।
कब होगा प्रभात हमारे भारत में ।

धर्म-कर्म की ओढ़ के चादर,
रावण को सीने से लगाकर,
ज़ोर-शोर से फैल रही है
साम्प्रदायिक आग हमारे भारत में ।
कब होगा प्रभात हमारे भारत में ।

वोट पे तिरछी नज़र टिका के,
झंडे पर श्रीराम लिखा के,
ठोक के छाती निकल पड़ी है
हिटलर की बारात हमारे भारत में ।
कब होगा प्रभात हमारे भारत में ।

मन्दिर-मस्जिद तुड़वाती है,
भाई-भाई को लड़वाती है,
देखो कितनी शातिर हो गई
पूँजीपति जमात हमारे भारत में ।
कब होगा प्रभात हमारे भारत में ।