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मानुस-विचार / नवीन ठाकुर 'संधि'
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केला आरो पीपरोॅ रोॅ पत्ता
हरदम डोलतैं रहै छै,
कुछ नै कुछ बोलतैं रहै छै।
हर इंसान कुछू नै कुछू सोचतैॅ रहैॅ छै,
गीत आरो संगीत गैतें रहै छै।
है पंडित ज्ञानी नें कहलै छै,
पुतौहोॅ पर सास बिन वजह बोलतैं रहै छै,
केला आरो पीपरोॅ...
बेटी पर माय नें ममता घोलवे करै छै,
सोना-चाँदी में सोनारें सोहागा डालवे करै छै।
माय रोॅ आगू बुतरू कानवे करै छै,
वेदें पुराणें कहलै छै।
केला आरो पीपरोॅ...
सब औरतें मरदोॅ रोॅ गुण अवगुण कहवे करै छै,
प्रेम बढ़ाय वास्तें पति-पत्नी लड़वे करै छै
प्रकृति रोॅ गुण ‘‘संधि’’ गुनगुनैतैं रहै छै।