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मानो या मत मानो / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
मानो या मत मानो, मुझको भी न मनाने की कुछ चाह।
करो पूर्ण विश्वास भले, या मुझे जान लो बेपरवाह॥
मेरे पास ‘प्रेम’ नामक था जो कुछ, जैसा विमल पदार्थ।
उसको मैं दे चुका पूर्ण तुमको, मैं कहता तुम्हें यथार्थ॥