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मार देथिन पीस के / उमेश बहादुरपुरी

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हम्मर उमर हे बाबू बीस के,
ई धनियाँ हथिन तीस के हो
डर लागे हमरा ई बात के,
ई मार देथिन पीस के हो
हम्मर ....
हम हीऐ करिआ ई हथिन सामर,
हम ही ठिंगना ई हथिन लम्हर
रहे ले चाही हम तो दूर-दूर,
ई लाबे हमरा खींच के हो
डर ....
इनखा देखके डर ऐसन लागे,
भूत बैताल देख लोक जइसे भागे
ई चाभे ले दिखावे हमरा दाँत,
अप्पन बत्तीस से हो
डर ....
हम भागी दूर ई कहे बनऽ तिरसठ,
बना देबो सइयाँ जी तोहरा लंपट
कइसुँ करके कर दऽ ए बाबा,
रिश्ता दुनहुँ के छत्तीस के हो
डर ....
रात हो या दीन कहे चलऽ संग-संग,
रख देलक करके हमरा तंग-तंग
हमरा पर उतारे रात रात भर,
ई तो अप्पन खीस के हो
डर ....
एकरा से बढ़ियाँ रहतूँ हल कुँआरे
ऐसन मेहररूआ के, के अब सम्हारे
ई रख देलक अपन मसिनियाँ में,
हमरा के घीस के हो
डर .....