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मारग आदी रातलों हेरी / ईसुरी
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
मारग आदी रातलों हेरी,
छैल विदरदी तेरी।
बेकल रई पपीहा जैसी,
कहाँ लगाई देरी?
भीतर सें बाहर लों आई।
दै दै आई फेरी।
उठ उठ भगी सेज सूनी सें
लगी ऑख ना मोरी
तड़प तड़प सो गई ईसुरी।
तीतुर बिना बटेरी।