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माहिए (61 से 70) / हरिराज सिंह 'नूर'

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61. अंदाज़ नहीं होगा
        जीत का जब मुझसे
        आग़ाज़ नहीं होगा

62. पानी की हुई तंगी
        ताल सभी सूखे
        भू फ़स्ल बिना नंगी

63. ये पीले सुमनवाली
        सरसों खिले जब-जब
        लगती हमें मतवाली

64. मुझको इसी पीपल का
        ब्याह रचाना है
        निर्णय ये नहीं कल का

65. उसकी ही कहानी है
        वेद-पुराणों में
        दुनिया को सुनानी है

66. हर सम्त सजे मेले
        मैंने मगर घर पर
        कितने ही हैं दुख झेले

67. आशा है, निराशा है
        पेट की ख़ातिर ही
        बंदर का तमाशा है

68. कब पीर पराई है
        श्याम-भजन रचकर
        मीरा ने जो गाई है

69. मूरत तिरी भाए है
        मुझको ये डर कैसा
        दिन-रात जो खाए है

70. बादल ये जो काले हैं
        कल के लिए ये ही
        भूखों के निवाले हैं