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मिटाई होसी तिरस / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
इन्नै-बिन्नै
खिंड्योड़ी
ठीकरियां अणथाग
बडा-बडा माट
ढकण्यां
परसहीण नीं है।
माटी
ओसण-पकाई हो सी
दो-दो हाथां।
जळ भर
ढक्या होसी माट
हर घर में
किणी हाथां
सकोरो भर जळ सूं
मिटाई हो सी तिरस
आपरी अर बटाउ री
काळीबंगां रो थेड़
आज भी सांवट्यां है ओळ्यूं
छाती माथै लियां
अखूट ठीकरियां।