भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मिनखपणो / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
मिनख हो
मिनखापणो तो राखो
खाली खुद रा गीत
मत ना गुणो
कीं दूजां री भी सुणो
कीं नूंवा बणो
नीं तो लोग कैवैला
ओ मिनख नीं
रूंख है।