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मिनखा सरीर / हरीश बी० शर्मा

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मिनखा सरीर
समै री तसवीर
चमकती सोनलिया काठ री
चौखट में मंढयोड़ी
मिंदर में
एक खीलै री अटकाण सूं
अटकी है
खीलो भाव रो कै भगती रो
पिछाण कोनी
पण माळा मोड़-बेेगै चढै है
अर भींत रै सायरै लटकी है
हे पड़ी !
अर, बा पड़ी !!
पड़ण रै अंदेसै में
बरसा बंधी टंगी रैवै है।