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मिलके बिछड़ के ख़त्म यूँ रिश्ता नहीं होता / संकल्प शर्मा

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मिलके बिछड़ के ख़त्म यूँ रिश्ता नहीं होता,
ये इश्क है इसमें कोई तनहा नहीं होता।

वो चार दिन की मुलाकात सालती है मुझे,
तू चार दिन के लिए तो मिला नहीं होता।

बस एक बार मोहब्बत के रंग देखे थे,
फ़िर उसके बाद मेरे दिल को हौसला नहीं होता।

मिलता है मेरा ज़ख़्म तेरे दर्द से वरना,
तू हाल पे मेरे कभी रोया नहीं होता।

सहरा ऐ तमन्ना का सफ़र ख़त्म हो कैसे,
कागज़ पे चढ़के पार ये दरिया नहीं होता।

तुमसे जो मिला है मेरा ताउम्र रहेगा,
इस मर्ज़ का अब मुझसे मुदावा नहीं होता।