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मिलन / शारदा झा
Kavita Kosh से
तप्त पियासल धरा सँ,
आइ मिलनक दिन अछि
मेघ सँ हृदय खोलि कँ,
आलिंगनक दिन अछि
पोरे पोर भरि डगर डगर,
उच्छृंखल भेल बहैत रहल
पाथर पर मोती बरिसँबैत,
आनन्दित मेघ नचैत रहल
पृथ्वी के हरखित भेल मोन,
आइ बड्ड रमणीक दिन अछि
प्रतीक्षा में प्रिया छलि अकुलायल,
रस-भाव सेहो छलनि कुम्हलायल
रसिक मेघ अनलक प्रिय संगे,
हृदय कमल अछि फेर फुलायल
कोइलिक कूक लगै मनभावन
आइ लजाइत सजनीक दिन अछि
पर्वत सँ उतरैत नब सरिता
बूँद-बूँद मिलि सद्यः रचिता
देलक बहा सब ऊष्मा-ताप
कलकल कय गाबय ई वनिता
निशिगंधा संग अमरबेल केँ
प्रेमसिक्त बटगबनीक दिन अछि
चन्द्र तरेगन रहता हेरायल
मेघक ओट मे सब छैथि नुकायल
पहिल बरखा आनल जे पाती
पढ़लि मौन भ' सजनी लजायल
गरजि-बरसि नभ नेह बरसाओल
आइ बिहुँसैत धरणीक दिन अछि