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मिलना / नरेश गुर्जर
Kavita Kosh से
पहली बार मिलने पर
उसने मुझसे
मेरी कविताओं के बारे में बात की
दूसरी बार
किताब के बारे में
और तीसरी बार
मेरे बारे में
चौथी बार वो
चुप रही
बस मेरी उल्टी हथेली पर
उसने अपना हाथ रख दिया
और कंधे पर सर
उस दिन वो मुझसे नहीं
मैं उससे मिला था।