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मिली / साहिल परमार
Kavita Kosh से
नूह् की कश्ती की तरह ज़िन्दगी मिली
जब से सनम मुझे तुम्हारी बन्दगी मिली
राम ने जो खटखटाए हर नगर के द्वार
थरथराती मौत से हैरानगी मिली
घूमता कर्फ़्यू मिला है भद्र शहर में
हालात में भद्दी पूरी शर्मिन्दगी मिली
संसद में घुसा शेर भूखा, निकला बोल के
नेता के रूप में ये साली गन्दगी मिली
मानिन्द मूसा की तुम्हें चलाता रहूँगा
देखने की दूर तलक दीवानगी मिली
मूल गुजराती से अनुवाद : स्वयं साहिल परमार