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मिले नेत्र नेत्रों में जाकर / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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मिले नेत्र नेत्रों में जाकर, श्रवण मिले श्रवणों में सत्य।
मिलीं अन्य इन्द्रिय सारी प्रियके इन्द्रिय-समूह में नित्य॥
हृदय हृदयमें मिला, समाये प्राण सदा प्रियतम के प्राण।
एकरूप हो गये, रहा रंचक भी नहीं भिन्नता-भान॥
किसको कौन समर्पित, किसमें कौन हुआ कब कैसे लीन।
प्रियतम है या प्यारी, कौन बताये यह सुधि-बुधिसे हीन॥