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मिस्त्री / एस० जोसेफ़
Kavita Kosh से
एक मिस्तरी के साथ गया था काम पर
दोपहर को खाने के बाद
बैठा पुआल पर जानवरों के कोठे में
अधपके केले को कुतर र्हीएक चिडिया
क्या उसे पकड़ लूँ अभी
एक पीला पत्ता पपीते के पेड़ से टूट कर गिरा
मैं एक पिपहरी बना सकता हूँ इसी से
शाम को तड़ी के ठेके पर बैठा मिस्तरी बोला
-तू तो किसी काम का नहीं रे
हर चीज़ में घपला करता
जाने क्या सोचता
खड़ा का खड़ा रह जाता है
हथौड़ा माँगा तो कुदाल थमा दी
गारा मँगवाया तो ईंट उठा ली
लोहे का तसला उठाए
खो जाता है जाने कहाँ
मिस्तरी जी तो चल बसे पिछले दिनों
मेरी स्मृति में बसी है अभी तक
केले पर चोंच मारती वह चिड़िया
और बचा है पपीते का पत्ता वही
अनुवाद : राजेन्द्र शर्मा