भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मीर / आलोक धन्वा
Kavita Kosh से
मीर पर बातें करो
तो वे बातें भी उतनी ही अच्छी लगती हैं
जितने मीर
और तुम्हारा वह कहना सब
दीवानगी की सादगी में
दिल-दिल करना
दुहराना दिल के बारे में
ज़ोर देकर कहना अपने दिल के बारे में कि
जनाब यह वही दिल है
जो मीर की गली से हो आया है।
(1996)