भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीरां / संतोष मायामोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर से निकल कर
घर-घर
नगर-नगर घूमना
तो थी अलग बात

स्त्री वस्त्रों से बाहर
नहीं निकाल सकती थी
हाथ अथवा अपना मन
उस वक़्त त्यागे तुम ने
महल और अटारी
जगाई पहली जोत -
नारी मुक्ति आंदोलन की ।

तुम तूठी थी दुनिया को
तुम्हें तूठा था कन्हाई !

अनुवाद : नीरज दइया