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मुंबई : कुछ कविताएँ-7 / सुधीर सक्सेना

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समुद्र से नहाकर निकली

मछेरन सी मुम्बई

खिलखिलाती है रात तारों के संग

बतियाती है चांद से घंटों

अंगड़ाई लेती है तो समुद्र फट पड़ता है युगल-घट में


हठात

देह से चिपक चमकते हैं रेत के कण

यक-ब-यक जीवन्त हो उठता है पोस्टर आवारा का

बिंदास नरगिस है बम्बई

रेत पर उसके पीछे आज भी

भाग रहा है

नीली आँखों वाला परदेसी राजकपूर।