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मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ / आबिद मुनावरी
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मुक़द्दर में साहिल कहाँ है मियाँ
मिरी नाव बे-बादबाँ है मियाँ
जो बर्क़-ए-तपाँ से मुनव्वर रहे
वही आशियाँ आशियाँ है मियाँ
कहाँ जाइए मय-कदा छोड़ कर
यही एक जा-ए-अमाँ है मियाँ
अबद तक मुकम्मल न हो पाएगी
शब-ए-ग़म की ये दास्ताँ है मियाँ
कहाँ पावँ रक्खूँ परेशान हूँ
ज़मीं सूरत-ए-आसमाँ है मियाँ
मुक़द्दस सही कारोबार-ए-वफ़ा
मगर इस में नुक़सान-ए-जाँ है मियाँ
अजब फीकी फीकी सी है चाँदनी
उदास आज क्यूँ चन्द्रमाँ है मियाँ
जहाँ दिल के बदले में मिलता है दिल
वो दुनिया न जाने कहाँ है मियाँ
नहीं मुझ से 'आबिद' वो कुछ ख़ास दूर
फ़क़त ज़िंदगी दरमियाँ है मियाँ